मिट्टी के जरा सी आस पाली है, मेरी मेहनत खरीदो लोगो मेरे घर भी दिवाली है
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मैगलगंज खीरी : आधुनिकता की चकचौन्ध व बदलते परिवेश में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर अपनी प्राचीन कला को छोड़ कर दूसरे व्यवसायों की तरफ अग्रसर होना पड़ा था, जिसका मुख्य कारण था उपेक्षा। अब फिर आस जागी प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगने के बाद कि अब वो अपनी कला चलते अपने रोजगार में वापस आ सकेंगे । मैगलगंज जो कि गुलाब जामुन के नाम से प्रसिद्ध है उसकी प्रसिद्धि  का एक कारण ये भी है कि मिट्टी की कटोरी में गुलाब जामुन परोसे जाते थे मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू गुलाब जामुन को और अधिक स्वादिष्ट बनाते थे, पर आधुनिकता की अंधी दौड़ में प्लास्टिक और फाइबर ने गुलाब जामुन का स्वाद फीका किया, वही मिट्टी के कारीगरों को बेरोजगारी की तरफ भी धकेला था।

दिवाली का पर्व नजदीक आते ही कुम्हार जो मिट्टी के बर्तन बना कर अपनी व परिवार की जीविका चलाते इतना व्यस्त हो जाते है कि उन्हें न खाने की चिंता रहती न सोने की मिट्टी के बर्तन विशेष कर दिये, कुल्हड़ प्याली, छोटी बड़ी हांडी बच्चों के खिलौने आदि बदलते परिवेश में आधुनिकता ने इनकी कला लगभग विलुप्त से कर दिया था दिवाली आते ही गांवो में मिट्टी के दियो की टिमटिमाहट दिखने लगती थी गांव जगमगाते थे। उनकी जगह समय के साथ साथ लोग चाइनीज इलेक्ट्रिक झालरों की तरफ आकर्षित होते गये मिट्टी के दिये बनाने वाले कारीगर भी अपनी कला को छोड़ कर पेट पालने के लिए  दूसरे व्यवसायों की ओर अग्रसर होने लगे।

आधुनिकता की चकाचौंध व बदलते परिवेश में धीरे-धीरे प्राचीन कलाएं विलुप्त हो रही उपेक्षा के चलते और उपेक्षा का शिकार हो क्यों न आधुनिकता जो हावी है उसके चलते मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों पर जैसे गाज गिरी थी। बाजार में प्लास्टिक फाइबर के बर्तनों ने अपनी जगह बना ली जिसके चलते बर्तन कारीगर बेरोजगारी के कगार पर पहुँच गये थे उन्हें अपना व बच्चों भविष्य अंधकारमय लगने लगा था तभी प्रधानमंत्री द्वारा प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की खबर जब उन तक पहुँची बर्तन कारीगरों की खुशी का कोई ठिकाना न रहा और एक आस जागी की वो अपनी कला के माध्यम से बाजार में सोंधी खुशबू को बाजार में फिर से फैला सकेंगे । 

मैगलगंज निवासी योगेश पुत्र महेश मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते है बतौर योगेश उनके बाबा मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सिख इसे ही अपनी जीविकोपार्जन बनाया था। बाबा के पदचिन्हों पर चलते हुये पिता व अब वो स्वयं मिट्टी को अनेक रूपो में ढाल रहे है। रामपाल पुत्र मिहीलाल विवेक पुत्र महेंद्र भी मैगलगंज की कला को बर्तनों के रूप में बिखेर रहे है। गुड्डु पुत्र श्रीराम ने बताया हम विवश होकर दूसरे धंधे की तरफ अग्रसर हुये थे सबसे बड़ी समस्या तालाब है जहाँ से मिट्टी बर्तनों बनाने वाले करीगरों के पूर्वज सदैव निशुल्क तालाबो से मिट्टी निकालते थे जिससे बर्तन बनाते थे लेकिन अब तालाब में अवैध कब्जे के कारण मिट्टी निकलना मुश्किल हो रहा है दूर दराज से मिट्टी खरीद कर लाते है मिट्टी न मिलने से व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। सरकारी मदद की जरूरत है मिट्टी के कारीगरों को। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी न होने कारण कोई लाभ नही मिल पा रहा है। इन कारीगरों का मानना है कि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने से चाय पीने के लिये कुल्हड़ कटोरी हांडी की मांग बढ़ी है।

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