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तुला संक्रांति के अवसर पर पढ़िए तुला संक्रांति की पूजा विधि और कथा
फाइल फोटो


जब सूर्य देव तुला राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे 'तुला संक्रांति' कहा जाता है। उड़ीसा और कर्नाटक में तुला संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन को 'तुला संक्रमण' के नाम से भी जाना जाता है।

साथ ही इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने और जरूरतंदों को अपनी क्षमता अनुसार दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं तुला संक्रांति की कथा और पूजा विधि। 

तुला संक्रांति शुभ मुहूर्त

आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी 18 अक्टूबर को मनाई जाएगी है। इसी दिन देर रात 01 बजकर 29 मिनट पर सूर्य देव कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। साथ ही इस दिन पुण्य काल प्रातः काल सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक रहेगा और महा पुण्य काल सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर 08 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इस दौरान स्नान-दान किया जा सकेगा।

तुला संक्रांति कथा 

स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, अगस्त्य मुनि की पत्नी का नाम कावेरी था। वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन एक दिन अगस्त्य मुनि अपने कार्यो में इतना व्यस्त हो गए कि वे अपनी पत्नी कावेरी से मिलना ही भूल जाते हैं। उनकी इस लापरवाही के चलते, कावेरी अगस्त्य मुनि के स्नान क्षेत्र में गिर जाती है और कावेरी नदी के रूप में भूमि पर उद्धृत होती हैं। तभी से इस दिन को कावेरी संक्रमण या फिर तुला संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।

तुला संक्रांति पूजा विधि 

तुला संक्रांति तिथि पर सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद पवित्र नदी में स्नान करें। यदि ऐसा करना संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलकार भी स्नान कर सकते हैं। इसके बाद आचमन कर पीले रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। अब जल में लाल रंग के फूल और काले तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के दौरान 

इस मंत्र का जाप करें-

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान पूर्वक पूजा करें। अंत में आरती कर भगवान से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। इसके बाद अपनी क्षमतानुसार जरूरतमंदों को दान करें।

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