ज्ञानवापी के सर्वे को लेकर चर्चा में आई ग्रांउड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) तकनीक
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वाराणसी : ज्ञानवापी के सर्वे को लेकर चर्चा में आई ग्रांउड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) तकनीक पुरातात्विक साक्ष्यों का पता लगाने में बेहद कारगर है। विशेषज्ञों के मुताबिक अमूमन रडार सेंसर का उपयोग भूगर्भ जल के संदर्भ में किया जाता है, लेकिन पुरातत्व और रक्षा क्षेत्रों में भी इसका प्रभावी इस्तेमाल होता है। इसके जरिए 20 फीट गहराई तक की सटीक जानकारियां आसानी से जुटाई जा सकती हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारी भी यही दावा कर रहे हैं कि जीपीआर से सर्वे में किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता। अदालत अगर ज्ञानवापी के सर्वे करने की इजाजत देती है तो इससे वहां की सच्चाई सामने लाई जा सकती है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भू एवं ग्रहीय विज्ञान विभाग के प्रो. जयंत कुमार पति बताते हैं कि जीपीआर का इस्तेमाल भारत में लंबे समय से हो रहा है। यह काफी प्रभावी भी है।जमीन के नीचे मौजूद किसी ऑब्जेक्ट (वस्तु) की उम्र का पता लगाने के लिए जीपीआर तकनीक में सेंसर का इस्तेमाल किया जाता है। रडार सेंसर ऑब्जेक्ट से टकराने के बाद उसकी आयु की गणना कर लेता है।

प्रो. जयंत के मुताबिक, जब कोहरे या बादलों के कारण सेटेलाइट की पहुंच ढीली पड़ जाती है, तब जीपीआर तकनीक काम आती है। इसका रडार सेंसर 20 फीट की गहराई तक किसी भी ऑब्जेक्ट को पेनेट्रेट करके आसानी से चिह्नित कर सकता है। इसका उपयोग पुरातात्विक अध्ययन में किया जाता है। यह तकनीक सांस्कृतिक विरासत स्थलों को संरक्षित करने और मूल्यवान कलाकृतियों के नुकसान को कम करने में मदद करती है।

जीपीआर जमीन के नीचे छिपी कलाकृतियों और वस्तुओं का पता लगा सकता है। जीपीआर पुरातत्वविदों को किसी स्थल की उपसतह (स्ट्रैटिग्राफी) का विश्लेषण करने में मदद करता है। यह तलछट और मिट्टी की विभिन्न परतों के बीच के अंतर का विश्लेषण करता है, जिससे उसके इतिहास, कब्जे की अवधि और संभावित गड़बड़ी की घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है।


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