जानें - एंडोमेट्रियोसिस की समस्या महिलाओं को क्यों करती है परेशान
फाइल फोटो


एंडोमेट्रियोसिस, सेहत से जुड़ी एक ऐसी समस्या है, जो महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है। इस समस्या के चलते उनका रोजमर्रा की जिंदगी पर असर पड़ सकता है और प्रेग्नेंसी में कई तरह के कॉम्प्लीकेशंस पैदा हो सकते हैं। 

क्या है एंडोमेट्रियोसिस

इस बीमारी में, गर्भाशय की परत के समान टिश्यू, गर्भाशय के बाहर पेल्विस एरिया के अलग- अलग हिस्सों में विकसित होने लगते हैं, जिसके चलते पेल्विस में सूजन के साथ भयंकर दर्द की प्रॉब्लम हो सकती है। ये टिश्यू गर्भाशय के एंडोमेट्रियल ऊतकों की तरह काम करते हैं और हर मासिक धर्म चक्र के साथ बनते, टूटते हैं साथ ही ब्लीडिंग की प्रॉब्लम भी हो सकती है। 


हालांकि, गर्भाशय में टिश्यू के विपरीत, ये टिश्यू जमा होते रहते हैं, लेकिन ये शरीर से बाहर नहीं निकलते हैं जिसके चलते सिस्ट की समस्या हो सक्ती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, एंडोमेट्रियोसिस मासिक धर्म के समय विकसित हो सकता है और पीरियड्स तक जारी रह सकता है। एंडोमेट्रियोसिस का सबसे बड़ा खतरा प्रजनन क्षमता पर पड़ता है। अनुमान है कि एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित 50% महिलाओं को प्रेग्नेंसी प्लानिंग में बहुत मुश्किलें आती हैं।

एंडोमेट्रियोसिस के लक्षण

क्रोनिक पेल्विक पेन

  • बांझपन
  • दर्दनाक माहवारी
  • पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग
  • मूत्र या मल त्यागने में कठिनाई जैसी अन्य समस्याएं


सर्जरी: कुछ मामलों में, एंडोमेट्रियल टिश्यूज को हटाने के लिए सर्जरी जरूरी हो सकती है। यह गर्भधारण में आने वाली बाधाओं को कम करके प्रजनन क्षमता में सुधार करने में मदद कर सकता है। हालांकि, सर्जरी हमेशा प्रभावी नहीं होती है। इसमें इन्फेक्शन, ब्लीडिंग या प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचने जैसे जोखिम भी हो सकते हैं।

हार्मोनल थेरेपी: हार्मोनल थेरेपी मासिक धर्म चक्र से जुड़ी परेशानियां दूर करने और एंडोमेट्रियोसिस लक्षणों की गंभीरता को कम करने में मदद कर सकती है। यह ओव्यूलेशन को बढ़ावा देकर प्रजनन क्षमता को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकता है। हालांकि, यह एंडोमेट्रियोसिस से जूझ रही सभी महिलाओं के लिए प्रभावी नहीं होता है। इससे वजन बढ़ना, मूड स्विंग्स या पार्टनर के साथ रिलेशनशिप में कमी जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ): गंभीर एंडोमेट्रियोसिस या अन्य प्रजनन समस्याओं वाली महिलाओं के लिए, आईवीएफ सबसे अच्छा ऑप्शन हो सकता है। इस प्रक्रिया में अंडाशय से अंडे निकालना, उन्हें प्रयोगशाला में शुक्राणु के साथ निषेचित करना और फिर परिणामी भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित करना शामिल है। आईवीएफ महंगा हो सकता है और यह हर मामले में सफल नहीं हो सकता है, लेकिन फिर भी यह काफी प्रभावी है। 

जीवनशैली में बदलाव: जीवनशैली में भी कई बदलाव हैं, जो एंडोमेट्रियोसिस वाली महिलाओं के लिए प्रजनन क्षमता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं। इनमें हेल्दी वजन मेंटेन करना, व्यायाम करना, टेंशन फ्री रहना, धूम्रपान न करना और अत्यधिक शराब के सेवन से बचना भी शामिल है।

एंडोमेट्रियोसिस की प्रॉब्लम को मैनेज करने के तरीके

• ओमेगा-3 फैटी एसिड का सेवन: ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर फूड्स, जैसे- अलसी के बीज, अखरोट और सैल्मन फिश एंडोमेट्रियोसिस के खतरे को कम कर सकते हैं।

• नियमित व्यायाम करें: नियमित शारीरिक व्यायाम एंडोमेट्रियोसिस के कारण होने वाले दर्द और परेशानी को कम करने में मदद कर सकता है। यह बल्ड सर्कुलेशन को सुधारती है और शरीर में ऑक्सीजन के लेवल को बनाए रखती है। व्यायाम से एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन भी कम हो सकता है, तनाव कम हो सकता है और दर्द से राहत मिल सकती है।

• तनाव न लें: एंडोमेट्रियोसिस एक महिला के मूड, व्यक्तिगत संबंधों, पारिवारिक रिश्तों, काम और जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करके उसके दैनिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। एंडोमेट्रियोसिस के कारण होने वाले दर्द और परेशानी से तनाव का स्तर बढ़ सकता है जो लक्षणों और इसके प्रभाव को और बढ़ा देता है। 


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