आज धनतेरस पर भगवान धनवंतरी के खुलेंगे पट
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देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी में कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी पर धनतेरस के मान-विधान अनुसार श्री-समृद्धि की देवी लक्ष्मी विघ्नहर्ता गणपतिदेव के साथ दर्शन देंगी। स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी भक्तों पर दोनों हाथों से अन्न-धन का खजाना लुटाएंगी। विश्वनाथ गली स्थित अन्नपूर्णा दरबार के प्रथम तल स्थित मंदिर के पट शुक्रवार दोपहर पूजन-अर्चन के बाद पांच दिनों के लिए खुल जाएंगे।

भगवान धन्वंतरि की बनाई जाएगी जयंती

तिथि विशेष पर आरोग्य का अमृत कलश भी छलकेगा। इस उपहार के साथ स्वयं अवतरित होंगे भगवान धन्वंतरि जिनकी जयंती मनाई जाएगी। सुड़िया स्थित धन्वंतरि भवन में 300 वर्ष से अधिक पुरानी उनकी अनूठी अष्टधातु की मूर्ति सार्वजनिक रूप से दर्शनार्थ रखी जाएगी। रजत सिंहासन पर विराजमान लगभग ढाई फीट ऊंची, 25 किलोग्राम वजन की रत्न जड़ित मूर्ति साक्षात हरि के सामने खड़े होने का आभास कराएगी।

300 वर्ष पहले धन्वंतरि जयंती की हुई थी शुरुआत

एक हाथ में अमृत कलश, दूसरे में शंख, तीसरे में चक्र और चौथे हाथ में जोंक तो दोनों ओर सेविकाएं चंवर डोलाएंगी। दिव्य झांकी के दर्शन कर भक्त मंडली जयकार लगाएगी। राजवैद्य स्व. शिवकुमार शास्त्री का परिवार पांच पीढ़ियों से प्रभु की सेवकाई में रत है। उनके बाबा पं. बाबूनंदन जी ने 300 वर्ष पहले धन्वंतरि जयंती की शुरुआत की थी। यहां से ही अन्यत्र इसका प्रसार हुआ। वैद्यराज के पुत्र रामकुमार शास्त्री, नंद कुमार शास्त्री व समीर कुमार शास्त्री पूरे विधान से परंपरा निभा रहे हैं।

औषधीय पौधों से किया गया शृंगार

गुरुवार को ही प्रभु धन्वंतरि के विग्रह की साज-सज्जा, औषधीय पौधों से शृंगार किया गया। तिथि विशेष पर प्रात:काल षोडशोपचार पूजन-अर्चन होगा। दोपहर में विशिष्ट दर्शन और शाम पांच बजे एकदिनी विशेष परंपरा अनुसार पट आम श्रद्धालुओं के लिए खुलेंगे। पूर्व के वर्षों में दर्शन रात्रि पर्यंत और अगले दिन तक चलता था लेकिन अब इसे तेरस की रात 10 बजे तक सीमित कर दिया गया है। 24 अवतारों में धन्वंतरि भी एक थे।

मान्यता है, प्रभु धन्वंतरि के दर्शन से वर्ष भर परिवार में रोग-व्याधि नहीं आती। श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि विष्णु के 24 अवतारों में धन्वंतरि भी एक थे। बीएचयू में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार धन्वंतरि को सनातन धर्म में आयुर्वेद का प्रवर्तक और देवताओं का भी वैद्य माना जाता है। पृथ्वी लोक पर अवतरण समुद्र मंथन के समय त्रयोदशी तिथि में अमृत कलश लिए हुआ था।



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