आठवें दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं मां महागौरी. इनका नाम महागौरी इनके ’गौर’ (गोरा) वर्ण के कारण है. नारद के कहने पर इन्होंने भगवान महादेव से विवाह करने का संकल्प लिया था. इसके लिए इन्होंने कठोर तपस्या की.
कैसा है मां महागौरी का स्वरूप
इस कठोर तपस्या के फलस्वरूप इनका रंग काला हो गया. जब भगवान महादेव तपस्या से प्रसन्न होकर वर देने आए तब गंगाजल से धोकर पार्वती जी के शरीर की कालिमा समाप्त की. तुलसीदास जी ने अपनी रचना में पार्वती की तपस्या का उल्लेख किया है. इनके गोरा रंग की तुलना शंख और चन्द्रमा से की जाती है.
किशोरी अवस्था में माता वेश्वेत वस्त्र धारण करती थी. इनकी चार भुजाएं हैं. दाहिनी तरफ ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला हाथ त्रिशूल पकड़े हुए है. ऊपरवाले बाएं हाथ मे डमरू और नीचे वाला अभय मुद्रा में है. इनका वाहन वृषभ है.
महागौरी पूजा मंत्र
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
महागौरी की पूजा के लाभ
महागौरी उपासना श्रेष्ठ फलदायिनी है. इनकी उपासना से सारे ताप और कलुषता समाप्त हो जाते हैं. यहां तक कि जन्म जन्मांतर से संचित पाप समाप्त होते हैं. इसके साथ ही आने वाले पापों के पहले से नष्ट हो जाने की संभावना बनती है. अक्षय पुण्यों का उदय होता है. मन से की गई पूजा का देवी की तरफ़ से अपार फल देनेवाला होता है. इनकी शरणागति हमारे लिए सत्त का द्वार खोलता है.
देवी पुराण के अनुसार आज के दिन 8 कन्याओं का भोज करवाना चाहिए. स्त्रियां आज की दिन बैंगनी रंग के वस्त्र पहनती हैं. कई लोग आज ही के दिन हवन और कन्या पूजन कराते हैं.