फिक्की फ़्लो नेआयोजित की  सेल्फ लीडरशिप पर किया वार्ता का आयोजन
फाइल फोटो


लखनऊ। फिक्की फ्लो लखनऊ चैप्टर ने आज  प्रसिद्ध वक्ता प्रोफेसर हिमांशु राय, निदेशक आईआईएम इंदौर द्वारा सेल्फ लीडरशिप पर एक वार्ता का आयोजन होटल हयात रिजेंसी में किया। कार्यक्रम की शुरुआत फ्लो चेयर पर्सन स्वाति वर्मा,प्रो. हिमांशु राय और लखनऊ जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार ने दीप जलाकर किया।

 देश के महानतम प्रबंधन गुरुओं और शिक्षाविदों में से एक, प्रो. राय एक मोटिवेशनल वक्ता भी हैं जो नेतृत्व, शिक्षा, पर शानदार बातचीत करते हैं।आईआईएम अहमदाबाद के फेलो और आईआईएम इंदौर के निदेशक डॉ. राय को टाटा स्टील, आईआईएम लखनऊ, एसडीए बोकोनी, मिलान, इटली और एक्सएलआरआई जमशेदपुर के साथ कार्य करने का समृद्ध अनुभव रहा है। 

 उन्होंने IIM-अहमदाबाद से डॉक्टरेट फ़ेलोशिप प्राप्त की और वह CAT 2010 के संयोजक थे, जहाँ उन्होंने CAT के इतिहास में कुछ बड़े बदलाव लाए।
 पुराने संबंधों के बारे में बात करते हुए डॉ. राय ने उपस्थित फ्लो सदस्यों को बताया कि उन्होंने आईआईएम लखनऊ में संकाय के रूप में भी कार्य किया है।

उन्होने कहा कि आज के इस दौर में युवा रहना बहुत अच्छा है। आज बहुत ज्यादा मात्रा में युवाओं के लिए अवसर उपलब्ध हैं, जानकारी हम सब की उंगलियों पर है, नवाचार के लिए यह समय अधिक अनुकूल और सहायक है।  मेरे अनुभव में स्पष्ट दृष्टि वाले लोग और उस दृष्टि को क्रियान्वित करने की उनकी दृढ़ता इस दुनिया को बदल देगी।



आज की पीढ़ी के पास हमारी तुलना में कहीं अधिक जानकारी है और साथ ही चुनने के लिए कई विकल्प भी हैं।  शिक्षा और करियर का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है।  साथ ही मेरा मानना ​​है कि आज की पीढ़ी डेटा और सूचना के बीच अंतर नहीं करती है।  संचार प्रौद्योगिकियाँ कई गुना बढ़ गई हैं लेकिन संचार की गुणवत्ता और प्रभावशीलता में गिरावट आई है।  मुझे लगता है कि यह मंथन का दौर है और एक बार जब हर कोई इस डिजिटल क्रांति के साथ सामंजस्य बिठा लेगा और इसका उपयोग करने में परिपक्व हो जाएगा तो चीजें बेहतरी के लिए बदल जाएंगी।

उन्होंने कहा कि जब हम 20 साल के होते हैं तब हमारा व्यक्तित्व आकार लेता है, और इसका बहुत कुछ उन अनुभवों में निहित होता है जिनसे हम 8 साल की उम्र में गुजरते हैं। बच्चे 2 साल की उम्र में चीजों को समझना शुरू कर देते हैं,  और उसके बाद सीखने की प्रक्रिया तीव्र होती है।   

 हमारी शिक्षा व्यवस्था में हर स्तर पर बदलाव की जरूरत है।  प्रीस्कूल और प्राइमरी स्कूल स्तरों पर, हमें ऐसी शिक्षाशास्त्र को शामिल करने की आवश्यकता है जो बच्चों में जिज्ञासा पैदा करे।  मिडिल स्कूल और उससे ऊपर के विद्यार्थियों को रटने की बजाय अनुभव और प्रयोग से सीखने पर ध्यान देना चाहिए।  उच्च शिक्षा में ऐसे कार्यक्रम शामिल होने चाहिए जो देश की जरूरतों को पूरा करें ।

उन्होंने बताया कि एक प्रशिक्षक एक औपचारिक प्रशिक्षक होता है जो विभिन्न शिक्षाशास्त्रों के माध्यम से प्रशिक्षुओं के ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण में कमियों को संबोधित करता है।  दूसरी ओर एक सलाहकार एक अनौपचारिक प्रशिक्षक और मित्र होता है, जो शिष्यों को जीवन के अपने अर्थ खोजने में मदद करता है।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला अधिकारी, लखनऊ सूर्यपाल गंगवार पूर्व चेयरपर्सन माधुरी हलवासिया, आरुषी टंडन, ज्योत्सना हबीबुल्लाह, वाइस चेयरपर्सन वंदिता अग्रवाल, विनीता यादव, शमा गुप्ता, डॉ शीतल शर्मा प्रोफेसर राकेश चंद्रा डॉक्टर विभूति गुप्ता अंजू नारायण, श्रुति सांडिल्य और नेहा सिंह सहित 100 से अधिक सदस्य मौजूद थे।


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